“खाना नहीं, ठगी पहुंची दरवाजे पर: स्विगी ग्राहक ने तोड़ा स्कैम का जाल”

एक स्विगी ग्राहक ने हाल ही में सोशल मीडिया पर अपना अनुभव साझा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे वह एक डिलीवरी पार्टनर की ओटीपी धोखाधड़ी से बाल-बाल बचीं। यह मामला रोज़ाना होने वाली ऑनलाइन फूड डिलीवरी के छिपे खतरों को उजागर करता है।

ग्राहक के अनुसार, ऑर्डर करने के करीब डेढ़ घंटे बाद ऐप पर नोटिफिकेशन आया कि डिलीवरी एजेंट “घर के दरवाजे पर” पहुंच चुका है। लेकिन हकीकत में न तो खाना आया, न ही कोई एजेंट दिखा। इसके बजाय, डिलीवरी पार्टनर ने फोन कर कहा कि वह ऑर्डर पिक नहीं कर पा रहा है और नए राइडर को असाइन करने के लिए ओटीपी चाहिए।

ग्राहक को यह बात संदिग्ध लगी और उन्होंने साफ कह दिया—“पहले ऑर्डर डिलीवर करो, फिर ओटीपी की बात करो।” इसके बाद कॉल कट गई। बाद में स्विगी कस्टमर सपोर्ट से पता चला कि एजेंट ने झूठ बोलते हुए सिस्टम में “एक्सीडेंट” रिपोर्ट कर दिया था, ताकि डिलीवरी कैंसल हो सके।

ऑनलाइन प्रतिक्रिया
यह कहानी जल्दी ही इंटरनेट पर वायरल हो गई। कई यूज़र्स ने ग्राहक की समझदारी की तारीफ़ की।

  • एक यूज़र ने लिखा, “फोन पर ओटीपी न देकर आपने सही किया।”
  • एक अन्य ने अपने साथ हुए समान अनुभव का ज़िक्र करते हुए बताया कि उन्होंने शिकायत की तो स्विगी ने राइडर को फटकार लगाई।

कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि तकनीकी तौर पर इस तरह की हेराफेरी कैसे संभव है, वहीं कई ने लंबा इंतज़ार और मुआवज़ा न मिलने पर स्विगी की आलोचना की।

बड़ी सीख
ओटीपी का उद्देश्य सुरक्षा होता है, लेकिन अगर ग्राहक धोखे में आकर इसे साझा कर दें तो यह सबसे कमजोर कड़ी बन सकता है। जानकारों का कहना है कि कभी भी फोन पर ओटीपी न बताएं और कंपनियों को भी सिस्टम में ऐसे मामलों पर सख्त नज़र रखनी चाहिए।

आज जब लाखों लोग रोज़ाना ऑनलाइन खाना मंगवाते हैं, तो ग्राहकों की सतर्कता और कंपनियों की सख्ती—दोनों ही भरोसे को बनाए रखने के लिए ज़रूरी हैं।

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