“छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: माओवादी विस्फोटक मामले में बरी बरकरार, कहा- शक से नहीं बनता सबूत”

रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बस्तर की निचली अदालत के 2016 के फैसले को बरकरार रखते हुए दो आरोपियों की बरी को सही ठहराया है। इन पर टिफिन बम रखने और प्रतिबंधित माओवादी संगठन से जुड़ा होने का आरोप था। अदालत ने स्पष्ट कहा कि “शक चाहे कितना भी गहरा हो, वह ठोस सबूत का विकल्प नहीं हो सकता।”

राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए दावा किया था कि सितंबर 2015 में बस्तर जिले के भरडीमाहु गांव के पास तलाशी अभियान के दौरान आरोपियों के बयान के आधार पर विस्फोटक बरामद किए गए थे।

हालांकि, निचली अदालत ने जांच में कई खामियां पाई थीं — जिनमें जब्ती प्रक्रिया में विरोधाभास और जब्त सामग्री के विस्फोटक होने की पुष्टि के लिए फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) रिपोर्ट का अभाव शामिल था।

हाईकोर्ट ने गवाहों के बयान का परीक्षण करते हुए पाया कि जांच अधिकारी और जब्ती गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभास और चूकें थीं। अदालत ने यह भी दर्ज किया कि विस्फोटक बरामदगी की जगह को लेकर बयानों में असंगतियां हैं और सभी जब्ती दस्तावेज मौके पर नहीं बल्कि थाने में हस्ताक्षरित किए गए थे, जिससे पूरी प्रक्रिया पर संदेह पैदा हुआ।

पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों को जब्त सामग्री से जोड़ने के लिए कोई ठोस और निर्णायक सबूत पेश नहीं कर सका। अदालत ने टिप्पणी की, “पूरा मामला शक पर आधारित है, और शक सबूत का विकल्प नहीं हो सकता।”

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को “उचित और न्यायसंगत” मानते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी और बरी के आदेश को बरकरार रखा।

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